‘पेच्छइ 742अलद्धलक्खं दीहं णीससइ सुण्णअं हसइ ।
जइ जंपइ अफुडत्थं तह से हिअअट्ठिअं किं वि ॥ २०० ॥’
  1. ‘अलद्धलच्छदी ह’ क ख