‘ण मुअंति 861दीहसासे ण रुअंति 862ण होन्ति विरहकिसिआ ओ ।
धण्णाऒ ताऒ जाणं बहुवल्लह वल्लहो ण तुमम् ॥ २५३ ॥’
  1. ‘दीहसासं’ गाथासप्त॰
  2. ‘चिरं ण होन्ति किसिआओ’ इति गाथासप्त॰