469अत्र कश्चिल्लीलारविन्दभ्रमणचेष्टया 470इन्दुमत्यै तिष्ठते ॥

  1. ‘अत्र लीलारविन्दभ्रमणचेष्टया’ क ख
  2. ‘कश्चिदिन्दुमत्यै’ क ख