मूल शाक गुण

प्रोक्ता धान्यगुणागुणाविधियुताश्शाकेष्वयं प्रक्रम--।
स्तेषां मूलत+एव साधु फलपर्यंतं विधास्यामहे ॥
मूलान्यत्र मृणालमूलकलसत्प्रख्यातनालीदला--।
श्चान्ये चालुकयुक्तपिण्डमधुगंगाहस्तिशूकादयः ॥ २७ ॥
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भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

  1. मधुगंगा अनेक कोषों में देखने पर भी इसका उल्लेख नहीं मिलता । अतः इस के स्थानमें मधुकं- द ऐसा होवें तो ठीक मालूम होता है, ऐसा करने पर, आलुका भेद यह अर्थ होता हैं ।