वृद्धि उपदंश आदिके वर्णन की प्रतिज्ञा ।

अतः परं वृध्युपदंशश्लीपद--। प्रतीतवल्मीकपदापचीगल--॥
प्रलंबगण्डार्बुदलक्षणैस्सह । प्रवक्ष्यते ग्रंथिचिकित्सितं क्रमात् ॥ ७२ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.