विषचिकित्सा.

इति विषसंप्रयुक्तबहुवस्तुषु तद्विषतां ।
प्रबलविदाहदरणश्वयथुप्रकरैः ॥
विषमवगम्य नस्यनयनांजनपानयुतैः ।
विषमुपसंहरेद्वमनमत्र विरेकगणैः ॥ २० ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

क्षितिपतिरात्मदक्षिणकरे परिबंध्य विषं ।
क्षपयति मूषिकाजरुहामपि चान्नगतं ॥
हृदयमिहाभिरक्षितुमनास्सपिबत्प्रथमं ।
घृतगुडमिश्रितातिहिमशिंबरसं सततम् ॥ २१ ॥
70 71 72 488

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

  1. मृग पक्षियोंसे भी विष की परीक्षा कीजाती है । इसलिये राजावों को ऐसे प्राणियों को रसो+ई घर के निकट रखना चाहिथे ।

  2. मुद्रिकामिति पाठांतरं । इस पाठके अनुसार अनेक औषधियोंसे संस्कृत व विघ्नविनाशक रत्नोपरत्नों से संयुक्त अंगूठी को पहिनना चाहिये । श्लोकमें परिबंध्य यह पद होनेसे एवं ग्रंथातरो में भी मूषिका का पाठ होने से उसी को रक्खा गया है ।

  3. चांतगतमिति पाठांतरं ॥