५०१ | १ | विहायाप्रति० | ५०६ | २४ | साप्याक्षिप्तैव |
५०४ | ९ | कल्पितो मतौ ॥ | ५०७ | १० | तन्निभचित्तमात्रे । |
प्र. पा. पि. २६ | महायानसूत्रालङ्कारे ६. ७ | ||||
१९ | निगद्यते ॥ | ५११ | ४ | वदन्ति ॥ | |
प्र. पा. पि. ४२ | समाधिराजसूत्रे ९. ४२ | ||||
२५ | निराकृतिः ॥ | ५२५ | ९ | युक्ता व्यावृत्ति० | |
५०५ | ६ | प्र. पा. पि. ३२ | ५३५ | २० | अणुभ्रमाणां |
५०५ | ६ | भातिर्यथामतः ॥ | ५३९ | १८ | तद्धेतुतोक्ता धर्माणां |
प्र. पा. पि. ३८ | ५४८ | २० | निषिध्यये | ||
१४ | बुद्धस्य देशना । | ५५१ | १७ | सर्वत्रावसितं प्रति | |
प्र. पा. पि. २७-९ | ५५५ | ६ | कथ्यते ॥ १४० ॥ | ||
२० | साध्या प्र. पा. पि. १ | नागार्जुनस्य | |||
इति | ५५८ | ६ | बाधा स्पर्शादिना |