किन्नग्रहघ्न अभ्यंगस्नान.
वातसेगशमनौषधैस्सुगंधैस्सुसिद्धतिलजैर्जलैस्तथा--।
भ्यंगधावनमिह प्रशस्यते किन्नरग्रहग्रहीत पुत्रके ॥ ७३ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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