164 विधातव्यानि । प्रस्तावनाकथितैरुद्धात्यकादिभिः अङ्गैर्युक्ता । पात्राणि च बहूनि । एवं विधातव्या वीथी । तथा दर्शयति वीथी त्विति ।

अथाङ्कः—

उत्सृष्टिकाङ्के प्रख्यातं वृत्तं बुद्ध्या प्रपञ्चयेत् ॥ ७० ॥
रसस्तु करुणः स्थायी नेतारः प्राकृता नराः ।
भाणवत् संधिवृत्त्यङ्कैर्युक्तः785 स्त्रीपरिदेवितैः ॥ ७१ ॥
वाचा युद्धं विधातव्यं तथा जयपराजयौ ।

उत्सृष्टिकाङ्क इति नाटकान्तर्गताङ्कव्यवच्छेदार्थम् । शेषं प्रतीतमिति ।

उत्सृष्टिकाङ्के प्रख्यातमितिवृत्तम् । प्राकृता जना नेतारः । रसस्तु करुणः । संधिसंध्यङ्गानि अङ्काश्च भाणवत् । स्त्रीपरिदेवितं भूयो विधेयम् । वाचैव युद्धं विधेयं न कर्मणा । जयपराजयौ च वाचैव विधेयौ । तथा दर्शयति उत्सृष्टिकाङ्क इति ।

अथेहामृगः—

मिश्रमीहामृगे वृत्तं चतुरङ्कं त्रिसंधिमत् ॥ ७२ ॥
नरदिव्यावनियमान्नायकप्रतिनायकौ ।
ख्यातौ धीरोद्धतावन्त्यो विपर्यासादयुक्तकृत् ॥ ७३ ॥
दिव्यस्त्रियमनिच्छन्तीमपहारादिनेच्छतः ।
786शृङ्गाराभासमप्यस्य किंचित् किंचित् प्रदर्शयेत् ॥ ७४ ॥
संरम्भं परमानीय युद्धं व्याजान्निवारयेत् ।
वधप्राप्तस्य कुर्वीत वधं नैव महात्मनः ॥ ७५ ॥
787 कार्यो व्यायोगवत् किं तु स्त्रीहेतुरिह संगरः ।

  1. N.S.P. vṛttyaṅgaiḥ.

  2. A.T.A. śṛṅgārahāsyam, and B.M. śṛṅgārākāram. Bh.Nṛ. in his comments uses only śṛṅgāram. I retained the N.S.P. reading because of the expression anicchantīṃ divyastriyam. Cf.:

    ekatraivānurāgaś cet tiryaṅmlecchagato ’pi vā |
    yoṣito bahusaktiś ced rasābhāsas tridhā mataḥ ||
  3. A.T.A. gives this half verse, which is confirmed by Bh. Nr.’s explanation.