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तिल आदिके गुण ।

उष्णा व्याप्तकषायतिक्तमधुरास्सांग्राहिका दीपनाः ।
पाके तल्लघवस्तिला व्रणगतास्संशोधना रोपणाः ॥
गोधूमास्तिलवद्यवाश्च शिशिरा बाल्यातिवृष्यास्तु ते ।
तेषां दोषगुणान्विचार्य विधिना भोज्यास्सदा देहिनाम् ॥ २५ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

वर्जनीय धान्य ।

यच्चात्यंतविशीर्णजीर्णमुषितं कीटामयाद्याहतं ।
यच्चारण्यकुदेशजातमनृतौ यच्चाल्पपक्वं नवं ।
यच्चापथ्यमसात्म्यमुत्कुणपभूभागे समुद्भूतमि-
त्येतद्धान्यमनुत्तमं परिहरेन्नित्यं मुनींद्रैस्सदा ॥ २६ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

शाक वर्णन प्रतिज्ञा

मूल शाक गुण

प्रोक्ता धान्यगुणागुणाविधियुताश्शाकेष्वयं प्रक्रम--।
स्तेषां मूलत+एव साधु फलपर्यंतं विधास्यामहे ॥
मूलान्यत्र मृणालमूलकलसत्प्रख्यातनालीदला--।
श्चान्ये चालुकयुक्तपिण्डमधुगंगाहस्तिशूकादयः ॥ २७ ॥
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  1. मधुगंगा अनेक कोषों में देखने पर भी इसका उल्लेख नहीं मिलता । अतः इस के स्थानमें मधुकं- द ऐसा होवें तो ठीक मालूम होता है, ऐसा करने पर, आलुका भेद यह अर्थ होता हैं ।