वैकरंज के विष से दोषप्रकोप व दर्वीकर दष्टलक्षण.

यद्वयव्यतिकरोद्भवसर्पास्ते द्विदोषगणकोपकरास्ते ।
वातकोपजनिताखिलचिन्हास्संभवंति फणिदष्टविषेऽस्मिन् ॥ ९१ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.