अंजनाभरणगतविषलक्षण.
विकृतिर१थेंद्रियेषु परितापनमश्रुगति--।
र्विषवहुलांजनेन भवति प्रबलांध्यमपि ॥
विषनिहतप्रभाणि न विभांत्यखिलाभरणा--।
न्यतिविदहन्त्यरूंष्यपि भवंति तदाश्रयतः ॥ १८ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
69 487विषमभिवीक्ष्य तत्क्षणविरागविलोचनता ।
भवति चकोरना१मविहगश्च तथा म्रियते ॥
पुनरपि जीवनिजीवक इति क्षितिमुल्लिखति ।
पृषतगणोऽति रौति सहसैव मयूरवरः ॥ १९ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
-
इद्रियोंमें विकृति नस्य व धूमप्रयोग से होती है । क्यों कि अंजन के प्रयोगसे केवल आंखोमें विकार उत्पन्न होता है अन्य इंद्रियो में नहीं । ग्रंथांतर में भी लिखा है ।
नस्यधूमगते लिंगमिंद्रियाणां तु वैकृतम् ।