‘देहो व्व पडइ दिअहो कण्ठच्छेओ व्व लोहिओ होइ रई ।
गलइ रुहिरं व्व संझा घोलइ केसकसणं सिरम्मिअ तिमिरम् ॥ ९१ ॥’