‘अकटगुमटी चन्द्रज्योत्स्ना कलं किल कोइलो लवइ अ मुहुर्याम्यो वायुर्निवाअर वाइ अ ।
अवि सखि अला रक्ताशोकस्तवापि मनोमुदे न कज न कजं मानेनाद्य प्रियं प्रतिजाहुदा ॥ १० ॥’