संशोधनं संयोजनं च
अत्र शुद्धप्रयोगा एव प्रदर्शिताः । ते संश्लिष्टस्थलेषु योजनीयाः
ग्रन्थभागे | |||||
१७, १९, २१, २३ -शीर्षकेषु ०ध्यायेऽन्वयाधि० | ३१२ | २६ | दिग्नागस्य प्रमाणसमुच्चये | ||
४७ | ६ | तिलकचित्रक० | ३१५ | १० | व्यस्तो हेतोरनाश्रयः । |
८० | ६ | स्वरूपसाक्षात्क० | प्र. वा. ४. ९१ | ||
८९ | अन्तिमपं० रत्न० निब० ८१, ८८ | ३१६ | ९-१० | मध्ये प्र. वा. १. १८ | |
९४ | ५ | द्रः श्लो. वा. पृः २९९ | ३२७ | २४ | तादृशदशाविशेषस्य |
१०६ | १ | व्याप्यव्यापकभावौ | ३५९ | १९ | अलीकमन्यत्वेऽपीदं व्या० |
११३ | ३ | चेदित्युक्तम् । तत्र | ३६३ | १२ | शक्त्यभावान्न |
१३७ | १६ | ग्राह्याध्यवसेय० | ३६४ | २४ | प्रकाशमानत्वमबाध० |
१४४ | ८ | सोऽयं नयः | ३६५ | ७ | नासत्प्रकाशवपुषा |
१६५ | १६ | ०दर्शनमौत्तर० | १५ | ०नुरोधे न प्रासङ्गिकं | |
१६९ | २२ | च स्थितिः ॥ | ३७१ | २५ | नीलस्वभावभिदुर० |
कार्यकारणभावसिद्धौ | ३७२ | १ | न नीलस्य प्रकाशश्चेत् | ||
१८४ | २ | कवलयितुर्नेह | साहसं किमतः परम् । | ||
१९१ | ४ | एकज्ञानासं० | ३८६ | ४ | चेतोनिराकृति० |
१९२ | ४ | प्राक् न पश्चा० | ३८९ | १७ | नागार्जुनस्य |
२०८ | १८ | दृष्टाविवेति | ४०३ | २२ | प्रतिपातिना |
प्रमाणविनिश्चये | ४०४ | १२ | तथतारम्बने | ||
२२६ | १९ | शालित्वादिस्थितेः | ४०५ | २ | विगमं याति |
२२९ | ५ | द्रःसाकारसिद्धौ पृः४४३ | ४३९ | २०-२१ | तन्मात्रे नावतिष्ठते ॥ |
२३७ | पादटीका | शतानन्दस्त्विति० | त्रिंशिकायाम् | ||
२५० | १८ | कार्य० | ४५८ | १०, १९ | कुतो भिनत्त्विति पृः ४५६ |
२७४ | २-१ | काश्चिदेकव्यवहार० | ४६३ | २ | न साकृतौ चेतसि |
२८८ | १२ | खर्वादिभेदस्यैव | १२ | न तत्त्वसंवृत्यनुगस्य | |
२९६ | ७ | सर्वकार्यप्रकाराणां | ४७१ | १९ | सा मुघा ॥ |
३०९ | १४ | विपक्षबाधकवशादि त्यादि पृः २९३ |
बो. अ. ९. २२-३ | ||
५०१ | १ | विहायाप्रति० | ५०६ | २४ | साप्याक्षिप्तैव |
५०४ | ९ | कल्पितो मतौ ॥ | ५०७ | १० | तन्निभचित्तमात्रे । |
प्र. पा. पि. २६ | महायानसूत्रालङ्कारे ६. ७ | ||||
१९ | निगद्यते ॥ | ५११ | ४ | वदन्ति ॥ | |
प्र. पा. पि. ४२ | समाधिराजसूत्रे ९. ४२ | ||||
२५ | निराकृतिः ॥ | ५२५ | ९ | युक्ता व्यावृत्ति० | |
५०५ | ६ | प्र. पा. पि. ३२ | ५३५ | २० | अणुभ्रमाणां |
५०५ | ६ | भातिर्यथामतः ॥ | ५३९ | १८ | तद्धेतुतोक्ता धर्माणां |
प्र. पा. पि. ३८ | ५४८ | २० | निषिध्यये | ||
१४ | बुद्धस्य देशना । | ५५१ | १७ | सर्वत्रावसितं प्रति | |
प्र. पा. पि. २७-९ | ५५५ | ६ | कथ्यते ॥ १४० ॥ | ||
२० | साध्या प्र. पा. पि. १ | नागार्जुनस्य | |||
इति | ५५८ | ६ | बाधा स्पर्शादिना |