अथ भिन्नलिङ्गस्यैवेति । द्वयमपि निगदव्याख्यातम् ॥

जातिप्रमाणधर्मतो न्यूनता उपमानस्य न्यूनोपमत्वम् । तत्र जातिप्रमाणन्यूनतार्थदोषः । धर्मन्यूनता तु धर्माभिधायकपदन्यूनतालक्षणाशब्ददोष एव । एतेनाधिकत्वं व्याख्यातमित्याशयवानाह—