स्पर्शमुखसंदंशवातगुदविष.
ये विचित्रतनबो बहुपादाः स्पर्शदंशपवनात्मगुदोग्राः ।
दंशतः कुणभवर्गजलूका मारयंति मुखतीव्रविषेण ॥ ७३ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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