487
विषमभिवीक्ष्य तत्क्षणविरागविलोचनता ।
भवति चकोरना१मविहगश्च तथा म्रियते ॥
पुनरपि जीवनिजीवक इति क्षितिमुल्लिखति ।
पृषतगणोऽति रौति सहसैव मयूरवरः ॥ १९ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
-
मृग पक्षियोंसे भी विष की परीक्षा कीजाती है । इसलिये राजावों को ऐसे प्राणियों को रसो+ई घर के निकट रखना चाहिथे ।
↩ -
मुद्रिकामिति पाठांतरं । इस पाठके अनुसार अनेक औषधियोंसे संस्कृत व विघ्नविनाशक रत्नोपरत्नों से संयुक्त अंगूठी को पहिनना चाहिये । श्लोकमें परिबंध्य यह पद होनेसे एवं ग्रंथातरो में भी मूषिका का पाठ होने से उसी को रक्खा गया है ।
↩ -
चांतगतमिति पाठांतरं ॥
↩