त्रिफला रसायन ।

प्रातर्धात्रीं भक्षयेद्भुक्तकाले ।
पथ्यामेकां नक्तमक्षं यथावत् ॥
कल्याणांगस्तीव्रचक्षुश्चिरायु--
र्भूत्वाजीवेद्धर्मकामार्थयुक्तः ॥ ४२ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

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  1. यद्यपि इस श्लोकमें आंवला, और बहेडे की संख्या निदेशं ठीक तौरसे नहीं की ग+ई है । तथापि अन्य अनेक वैद्यक ग्रंथोंमें प्रायः इसी प्रकारका उल्लेख मिलता है कि जहांपर त्रिफलाका साधा- रण कथन हो वहां उपरोक्त प्रकारसे ग्रहण किया जाता है । इसी आधारसे ऊपर स्पष्टतया संख्या नि- देश की ग+ई है ।

    दूसरी बात यह है कि श्लोकमें बहेडा सेवन करनेका समय नहीं बतलाया है । हरडके साथ ही खार्वे तो मात्रा बढती है, आंवले की मात्रा कमती होती है । इस कारणसे हम यह समशते है कि एक हरड, दो बहेडा, तीन आंवला इस क्रमसे लेकर तीनोंको एक साथ चूर्ण करके योग्य मात्रामें शाम सुबह सेवन करना चाहिये । यही आचार्यका अभिप्राय होगा ।