अर्शनाशकतक्र ।
श्लक्ष्णपिष्टवरचित्रकलिप्ता--। भ्यन्तराभिनवनिर्मलकुंभे ॥
न्यस्ततक्रमुपयुज्य समस्ता--। न्यर्शसां शमयतीह कुलानि ॥ १२० ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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