परिस्रावि व कंबुकावर्तलक्षण ।
कफात्परिस्रावि भगंदरं महत् । सकण्डुरं सुस्थिरमल्पदुर्घटम् ॥
उदीरितानेकविशेषवेदनम् । सुकंबुकावर्तमशेषदोषजम् ॥ ४७ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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गुदा के बाहर और पास में अर्थात् गुदा से दो अंगुल के फासले में, अत्यंत वेदना उत्पन्न करनेवाली पिडका फोडा उत्पन्न होकर, वही फूट जाता है, इसे भगंदर रोग कहते है ।
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