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अर्बुद लक्षण ।

पवनरुधिरपित्तश्लेष्ममेदप्रकोपा--।
द्भवति पिशितपेशीजालरोगार्बुदाख्यम् ॥
अतिकफबहुमेदोव्यापृतात्मस्वभावा--॥
न्न भवति परिपाकस्तस्य तत्कृच्छसाध्यः ॥ २२ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

अर्बुद चिकित्सा.

तमिह तदनुरूपप्रोक्तभैषज्यवर्गैः ।
परुषतरसुपत्रोघ्दट्टनासृक्प्रमोक्षैः ॥
अनुदिनमनुलेपस्नेहपत्रोपनाहै--।
रुपशमनविधानैः शोधनैः शौधयेत्तैः ॥ २३ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

ग्रंथिलक्षण व चिकित्सा ।

रुधिरसहितदोषैः मांसमेदस्सिराभि--।
स्तदनुविहितलिंगा ग्रंथयोंऽगे भबंति ॥
असकृदभिहितैस्तै दोषभैषज्यभेद--।
प्रकटतरविशेषैः साधयेत्तद्यथोक्तैः ॥ २४ ॥
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  1. रक्त इत्त्यादिके विकारसे उत्पन्न ग्रंथियां सात प्रकारकी है ऐसा ऊपरके कथनसे ज्ञातं होता है । लेकिन तंत्रांतरोमें वातज, पित्तज, कफज, मेदज, सिराज, इसप्रकार ग्रंथियोंके भेद पांच वतलाये हैं । हमारी समजसे ऊपरका कथन साधारण है । इसलिये, मांस रक्तसे ग्रंथि उत्पन्न नहीं होती है केवल वे दूषित मात्र होते हैं । ऐसा जानना चाहिये ॥ अथवा उग्रादित्याचार्य ग्रंथिके सात ही भेद मानते होंगे । ऐसा भी हो सकता है ।