शंखक लक्षण.
स्वयं मरुद्वा कफपित्तशोणितैः । समन्वितो वा तु शिरोगतोऽधिकः ॥
सशीतवाताद्भुतदुर्दिने रुजां । करोति यच्छंखकयोर्विशेषतः ॥ ६ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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इस का लक्षण यह है कि छीकं अधिक आती है । शिर ज्यादा गरम होता है । असह्य पीडा हाती है ! एवं स्वेदन, वमन, धूमपान, नस्य, रक्त मोक्षण, इन से वृद्धि को प्राप्त होता है ।
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