रसोंके त्रेसठ भेद.

एकवरद्विकत्रिकचतुष्कसपंचषट्कभेदभं--।
गैरखिलै रसास्त्रिकयुताधिकषष्टिविकल्पकाल्पिता ॥
तानधिगम्य दोषरसभेदविदूर्जितपूर्वमध्यप--।
श्चादपि कर्मनिर्मलगुणो भिषगत्र नियुज्य साधयेत् ॥ २८ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

रसभेदों का खुलासा इस प्रकार हैं--The Hindi commentary was not digitized.

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