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बस्तिनेत्रलक्षण ।

दृढातिमृदुचर्मनिर्मितनिरास्रवच्छागल--।
प्रमाणकुडबाष्टकद्रवमितोरुबस्त्यन्वितम् ॥
षडष्टगुणसंख्यया विरचितांगुलीभिः कृतं ।
त्रिनेत्रविधिलक्षणं शिशुकुमारयूनां क्रमात् ॥ ४८ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

तथैकनयरत्नभेदगणितांगुलीसंस्थिता--।
क्रमोन्नतसुकर्णिकान्यपि कनिष्ठिकानामिका ॥
स्वमध्यमवरांगुलात्मपरिणाहसंस्कारिता--।
न्यनिंद्यपशुबालधिप्रतिमवर्तुलान्यग्रतः ॥ ४९ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

बस्तिनेत्रनिर्माण के योग्य पदार्थ व छिद्रप्रमाण ।

सुवर्णवरतारताम्रतरुनिर्मितान्यक्षता--।
न्यनूनगुलिकामुखान्यतिविपक्वमुद्गाढकी ॥
कलायगतिपातितात्मसुषिरानुधारान्विता--।
न्यमूनि परिकल्पयेदुदितलक्षनेत्राण्यलम् ॥ ५० ॥
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  1. द्विविध नय--द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक, द्रव्यकी विवक्षा करनेवाला नय द्रव्यार्थिक व पर्यायकी विवक्षा करनेवाला पर्यायार्थिक कहलाता है ।

  2. रत्नत्रय--सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चा- रित्र, तत्वोंपर यथार्थ विश्वास (Good Conduct) रखना सम्यग्वर्शन तत्वोंके यथार्थ शान (Good Knowledge) सम्यग्ज्ञान, व हेयोपादेय रूपसे तत्वोमे विवेक जागृति होकर आचरण करना (Good Character) सम्यक्चारित्र कहलाता है ।