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क्रिमिज, क्षयज शिरोरोग.
क्रिमिप्रकारैर्दलतीव तच्छिरो । रुजत्यसृङ्नासिकया सृजत्यलं ।
स्वदोषधातुक्षयतः क्षयोद्भव--। स्तयोर्हितं तत्क्रिमिदोषवर्धन१म् ॥ ४ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
सूर्यावर्त, अर्धावभेदक लक्षण.
क्रमक्रमाद्वृद्धिमुपैति वेदना । दिनार्धतोऽसौ व्रजतीह सूर्यवत् ॥
शिरोऽर्धमर्धं क्रमतो रुजत्यलं । ससूर्यवत्तोर्धशिरोऽवभेदकः ॥ ५ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
शंखक लक्षण.
स्वयं मरुद्वा कफपित्तशोणितैः । समन्वितो वा तु शिरोगतोऽधिकः ॥
सशीतवाताद्भुतदुर्दिने रुजां । करोति यच्छंखकयोर्विशेषतः ॥ ६ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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इस का लक्षण यह है कि छीकं अधिक आती है । शिर ज्यादा गरम होता है । असह्य पीडा हाती है ! एवं स्वेदन, वमन, धूमपान, नस्य, रक्त मोक्षण, इन से वृद्धि को प्राप्त होता है ।
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