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अवदरणातिशोफबहुपादगुरुत्वरुजा ।
विषयुतपादुकाद्यपकृताश्च भवेयुः ॥ १६ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
वाहननस्यधूपगतविषलक्षण.
गजतुरगोष्ट्रपृष्ठगतदुष्टविषेण तदा--।
ननकफसंस्रवश्च निजधातुरिहोरुयुगे ? ॥
गुदवृषणध्वजेषु पिटकाश्वयथुप्रभवो ।
विवरमुखेषु नस्यवरधूपविषेऽस्रगतिः ॥ १७ ॥
भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.
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इद्रियोंमें विकृति नस्य व धूमप्रयोग से होती है । क्यों कि अंजन के प्रयोगसे केवल आंखोमें विकार उत्पन्न होता है अन्य इंद्रियो में नहीं । ग्रंथांतर में भी लिखा है ।
नस्यधूमगते लिंगमिंद्रियाणां तु वैकृतम् ।