ग्रंथकर्ताका उद्देश.

न चात्मयशसे विनोदननिमित्ततो वापि स--।
त्कवित्वनिजगर्वतो न च जनानुरागाशया--॥
त्कृतं प्रथितशास्त्रमेतदुरुजैनसिद्धांतमि--।
त्यहर्निशमनुस्मराम्यखिलकर्मनिर्मूलनम् ॥ ८८ ॥

भावार्थः--The Hindi commentary was not digitized.

556